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हवे॑ त्वा॒ सूर॒ उदि॑ते॒ हवे॑ म॒ध्यंदि॑ने दि॒वः । जु॒षा॒ण इ॑न्द्र॒ सप्ति॑भिर्न॒ आ ग॑हि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

have tvā sūra udite have madhyaṁdine divaḥ | juṣāṇa indra saptibhir na ā gahi ||

पद पाठ

हवे॑ । त्वा॒ । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । हवे॑ । म॒ध्यन्दि॑ने । दि॒वः । जु॒षा॒णः । इ॒न्द्र॒ । सप्ति॑ऽभिः । नः॒ । आ । ग॒हि॒ ॥ ८.१३.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

दो काल वही प्रार्थनीय है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सर्वद्रष्टा ईश्वर ! (सूरे+उदिते) सूर्य्य के उदित होने पर=प्रातःकाल (त्वा+हवे) मैं तेरी प्रार्थना करता हूँ और (दिवः) दिन के (मध्यन्दिने) मध्यकाल=मध्याह्न में तेरी स्तुति करता हूँ। हे इन्द्र ! यद्यपि तू (सप्तिभिः) सर्पणशील=गमनशील पदार्थों के साथ विद्यमान ही है, तथापि तुझे हम प्राणी नहीं देखते हैं, इस कारण (जुषाणः) प्रसन्न होकर (नः) हमारे निकट (आगहि) आ और आकर हम पर अनुग्रह कर ॥१३॥
भावार्थभाषाः - प्रातः मध्याह्न और सायंकाळ परमात्मा का ध्यान करें ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सूरे, उदिते) अभ्युदय के उदयकाल में (त्वा, हवे) आपका आह्वान करते हैं (दिवः, मध्यन्दिने) दिव्य पदार्थों की स्थिति में (हवे) आह्वान करते हैं (जुषाणः) प्रेमसहित आप (सप्तिभिः) सरणशील शक्तियों द्वारा (नः) हमारे समीप (आगहि) आएँ ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे सर्व ऐश्वर्य्यों के स्वामी परमात्मन् ! ऐश्वर्य्यप्राप्ति के प्रारम्भ में तथा ऐश्वर्य्य प्राप्त होने पर, हम लोग आपकी शरण को प्राप्त होते हैं, अर्थात् आप ही हमारे ऐश्वर्य्य की रक्षा करें, जिससे हम यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होकर सदा आपकी उपासना करते रहें ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा

कालद्वये स प्रार्थनीय इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! सूरे=प्रेरके ग्रहादीनां सूर्य्ये। उदिते=उदयं प्राप्ते सति प्रातःकाले। अहं त्वाम्। हवे=आह्वये=प्रार्थये। अपि च। दिवः=दिवसस्य। मध्यदिने=मध्याह्नकाले। त्वां हवे। हे इन्द्र ! यद्यपि त्वं सप्तिभिः=सर्पणशीलैर्गमनशीलैः संसारैः सह विद्यमानोऽसि। तथापि जुषमाणः=प्रीयमाणः सन्। नः=अस्मान्। आगहि=आगच्छ=अनृगृहाण ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सूरे, उदिते) अभ्युदयागमने (त्वा, हवे) त्वामाह्वयामि (दिवः, मध्यन्दिने) दिव्यपदार्थानां स्थितौ (हवे) आह्वयामि अतः (जुषाणः) प्रीयमाणः (सप्तिभिः) सरणशीलैः शक्तिभिः (नः) अस्मान् (आगहि) आयाहि ॥१३॥